सोमवार, 15 नवंबर 2010

पाण्डेय गणपत राय

विकट स्थितियां जब जब घेरें
धैर्य       ही     देगा       समाधान
आजादी         संकल्प      हमारा
मां की बेदी पर अर्पित    प्राण  


गणपत    बोले    तुम   जगे रहो
तुम    सजग    प्रहरी   बने    रहो


हर      दुश्मन     तुमसे     हारेगा
अगर    तुम्हारा   ज्ञान प्रखर हो
हर   मंजिल   तुम फतह करोगे
अगर  अपना विज्ञान  प्रखर हो


पर   हित में जीवन वरण करो
अपनी   धरती   को   नमन करो

         सन १८५७......सिपाही क्रांति ने झारखण्ड क्षेत्र में पूरी तरह से जनक्रांति  का रूप ले लिया था. इस क्रांति की लपटें झारखण्ड क्षेत्र की सुरम्य वादियों में फैल चुकी थीं ...... भोजपुर के क्रांतिवीर कुंवर सिंह ने वन्यांचल के शेरों को जगाने और उन्हें क्रांति से जोड़ने के लिए एक पत्र हजारीबाग में रह रहे अपने संबंधी लाला जगतपाल  जी को भेजा था....पत्र का एक-एक शब्द क्रांति की अग्नि से दहक रहा था.....झारखण्ड में  स्थित अंग्रेजों की सैनिक-छावनियों में उनका पत्र पढ़  कर सैनिकों ने बगावत की एक योजना रातों-रात तैयार कर ली थी.
           वीर कुंवर सिंह के पत्र को लेकर सतरंजी  के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और छोटानागपुर के राजा के दीवान पाण्डेय गनपत राय के बीच विचार-विमर्श चल रहा था. "ठाकुरों  के सामने एक अच्छा अवसर है, क्रूर, धोखेबाज  अंग्रेज शासन को ध्वस्त कर एक स्वदेशी शासन की स्थापना करने का...आपकी क्या राय है गणपत जी," ठाकुर विश्वथाथ शाहदेव ने प्रश्न रखा.  
           " मैंने तो अपनी भूमिका भी निश्चित कर ली है.....मैंने बाग़ी सैनिकों के साथ अच्छा  सम्पर्क बना रखा है......हम पूरी शक्ति के साथ क्रांति में भागीदारी करेंगे....आजादी या मौत यही मेरे जीवन का उद्देश्य है.." पाण्डेय गणपत राय अपनी बात को रखते हुए पूरे जोश से भरे हुए थे....उनकी मुट्ठियाँ कस गयीं थीं.


          हथियारों के सम्बन्ध में ठाकुर चिंतित थे . गणपत राय ने उन्हें बताया, "आपकी चिंता को मैं समझता हूँ...मैंने इस सम्बन्ध में भी कार्य प्रारम्भ कर दिया है...कुछ हथियार तो बाग़ी सैनिक छावनी से ले कर ही बगावत की राह पकडेंगे. कुछ हथियार हम थाना और छावनी पर भी अचानक हमला कर प्राप्त कर लेंगे. मैंने कुछ  कुशल कारीगरों को  देसी  बंदूक और गोलियां बनाने पर लगा दिया है...हमने कुछ सैनिकों को भी प्रशिक्षण  दे कर तैयार  किया है....एक अगस्त को डोरंडा छावनी में जब सैनिक अचानक विद्रोह  करेंगे तो बाहर से हमारे जवान उनकी मदद में अपनी पूरी ताकत लगा देंगे."


          इस विचार-विमर्श के बाद क्रांति के चाणक्य पाण्डेय गणपत राय  ने झारखण्ड के क्षेत्र उन सभी जमींदारों, सरदारों और समुदायों से  सम्पर्क करना शुरू कर दिया था, जो अंग्रेजी शासन का अंत  देखना चाहते थे. 


          एक अगस्त १८५७ ....डोरंडा छावनी में तय समय पर सैनिकों ने विद्रोह कर दिया.. ठाकुर और गणपत राय के जवान विद्रोहियों के साथ आग उगल रहे थे...छावनी में रह रहे अंग्रेज अफसर किसी तरह जान बचा कर भागे.....


         डोरंडा छावनी में सफल विद्रोह के बाद विद्रोहियों ने गुप्त बैठक की,जिसमें डोरंडा बटालियन के जयमंगलपाण्डेय, रामगढ़ बटालियन के जमादार माधो सिंह, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, पाण्डेय गणपत  राय, पलामू के भोक्ता  सरदार नीलाम्बर और पीताम्बर, पोराहाट के राजा अर्जुन सिंह आदि क्रांतिवीरों ने क्रांति के संचालन पर गंभीर वार्ता की. गणपत राय ने अपनी बात रखी," हमें अपना संघर्ष  और हमला तेज करना होगा....हमें ऎसी स्थति पैदा  करनी होंगी  कि छल प्रपंच में माहिर अंग्रेज पुन: रांची  में कदम न रख पाएं." 
         राजा अर्जुन सिंह  ने गणपत राय को ललकारा," क्यों गणपत जी, आप चाणक्य की भूमिका निभाएँगे न?"
         गणपत राय जी ने कहा," मैं तो कुर्बानी देने के लिए आगे आया हूँ!"
          विद्रोही सिपाही  जयमंगल पाण्डेय ने तभी प्रस्ताव रखा, "कोई भी फ़ौजी कार्यवाही बिना राजा और सेनापति के निश्चत नहीं हो सकती है... मेरा प्रस्ताव है कि इस परिस्थिति में हमारी क्रांति को सुचारू रूप से चलाने के लिए राजा का पद तलवार के धनी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव उठाएं और तलवार तथा कलम के धनी पाण्डेय गणपत राय जी संयुक्त सेना का सेनापति बनने की जिम्मेदारी सम्हाल लें."
         क्रांतिवीर जयमंगल सिंह का प्रस्ताव सभी क्रांतिकारियों  ने स्वीकार कर लिया. फिर बैठक में क्रांति की रूपरेखा, रणनीति, संपर्क और साझा आक्रमण करने आदि के विषय  में गंभीर चर्चा हुई  और अनेक निर्णय लिए गए. 
          ५ अगस्त, १८५७......पुरुलिया में अनेक सैनिकों ने अपनी नियोक्ता अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. उस विद्रोह में भी गणपत राय  के सैनिक शामिल थे. वहां संयुक्त विद्रोह के कारण ऎसी स्थिति पैदा हो गई कि डिप्टी कमिश्नर ओक्स को कलकत्ता भागना पड़ गया.
        सम्पूर्ण झारखण्ड क्षेत्र में विद्रोहियों ने गजब की क्रांति खड़ी कर दी थी...सरकारी खजाने लूटे जा रहे थे....पुलिस थानों पर हमला बोला जा रहा था.....पलामू में नीलाम्बर और पीताम्बर सरकारी ठिकानों पर तीरों की बरसात कर रहे थे......घात लगा कर वे अंग्रेजों और अंग्रेज समर्थकों का अंत कर रहे थे.....चेरो, खरवार और भोक्ताओं की सम्मिलित शक्ति ने क्रांतिकारियों में अपूर्व जोश का संचार कर दिया था....खरवार नेता परमानंद, भोक्ता नेता भोज भारत, नलकांत मांझी, भवानी बक्स राय, टिकैत उमराव सिंह, शेख भिखारी अपने तीर और तलवारों के साथ-साथ सैन्य संगठन का लगातार विस्तार करते चले जा रहे थे....
          क्रांति के क्रम में रांची करीब एक माह तक स्वाधीन रहा......लेकिन अंग्रेज चुप नहीं बैठे थे....वे भी विद्रोह को कुचलने के लिए, अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप षड्यंत्र  रच रहे थे...विभीषणों  की तलाश में धन लुटा रहे थे.....घर-भेदिया  खरीद रहे थे....पद  बाँट रहे थे..जमींदारियां बाँट रहे थे...उन्हें परिणाम भी मिला...१३ सितम्बर, १९५७ को अंग्रेजों ने छल-बल के साथ दिल्ली पर विजय हासिल कर ली...क्रांति का पतन प्रारम्भ हो गया...लेकिन झारखण्ड क्षेत्र में तब भी क्रांति की ज्वाला भड़क रही थी...चतरा में आमने-सामने की लड़ाई हुई, १५० क्रांतिकारी शहीद हो गए...अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी...उनके पास हथियारों की कमी नहीं थी..इस संघर्ष के नायक जयमंगल पाण्डेय तथा नादिर अली को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें सार्वजनिक रूप से अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया. अंग्रेजों ने पकड़े गए ७० विद्रोहियों को भी बड़ी बेरहमी से कत्ल करवा दिया और उनके शवों को अज्ञात जगह पर दफन करवा दिया.
         मार्च १८५८.....छल-प्रपंच में माहिर   मेजर नेशन ने महेश  नारायण शाही की मदद से ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पाण्डेय गणपत राय को गिरफ्तार कर, रांची में सार्वजानिक रूप ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को १६ अप्रैल १८५८ को और गणपत राय को २१ अप्रैल १८५८ को  से फाँसी दे दी गई.....जिस दिन गणपत राय  को फाँसी दी गयी, उस दिन उनके अनेक समर्थकों को कत्ल करवा कर, उनके शवों को अंग्रेजों ने स्थानीय जिला स्कूल के निकट के एक कुएँ में डलवा दिया....
           हालाँकि क्रांति को छल-बल से अंग्रेजों ने दबा दिया, लेकिन पाण्डेय गणपत राय की वाणी बाद में प्रतिफलित हुई," वह दिन आएगा जब पूरा देश एक झंडा, एक नेतृत्व और एक मार्ग पर चल  कर आजादी के लिए लड़ेगा और तब अंग्रेजों को भारत छोड़ना होगा."
          
           


         
         

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपके ब्‍लाग पर आकर अच्‍छा लगा आशा क्षेत्र के इतिहास का परिचय से ज्ञानवर्धन होगा

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  2. हिन्दी ब्लॉग्गिंग में स्वागत है !!

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  3. मित्र आप और आपकी तरह से अनेक साथी ब्लॉग पर लिख रहे हैं। किसी ने किसी स्तर पर इसका समाज पर असर होता है। जिससे देश की ताकत और मानवता को मजबूती मिलती है, लेकिन भ्रष्टाचार का काला नाग सब कुछ चट कर जाता है। क्या इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत नहीं है? भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?

    इसी दिशा में कुछ सुझाव एवं समाधान सुझाने के छोटे से प्रयास के रूप में-

    "रुक सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार!"

    आलेख निम्न ब्लॉग्स पर पढा जा सकता है?

    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/90.html

    http://presspalika.blogspot.com/2010/11/90.html

    http://presspalika.mywebdunia.com/2010/11/17/90_1289972520000.html
    Yours.
    Dr. Purushottam Meena 'Nirankush
    NP-BAAS, Mobile : 098285-02666
    Ph. 0141-2222225 (Between 7 to 8 PM)
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